Shravan Putrada Ekadashi: 30 जुलाई को है श्रावण पुत्रदा एकादशी, जानिए इस व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
एक हिन्दू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं. मलमास या अधिकमास की दो एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है.


हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व. हिन्दू पंचांग यानी कि कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक मास की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं. इस प्रकार हर महीने में दो एकादशियां पड़ती हैं. एक एकादशी शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है. एक हिन्दू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं. मलमास या अधिकमास की दो एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है. वैसे तो हर एकादशी का अपना महत्व है, लेकिन श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का बड़ा महात्म्य है. एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है.
एक साल में दो बार पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है. पौष शुक्ल पक्ष एकादशी (दिसंबर-जनवरी) और श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी दोनों को ही पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी जुलाई या अगस्त के महीने में आती है. पौष शुक्ल पक्ष एकादशी उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है, जबकि अन्य राज्यों में श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी को ज्यादा महत्व दिया जाता है. इस बार श्रावण शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी 30 जुलाई को है.


श्रावण पुत्रदा एकादाशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि: 30 जुलाई 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 30 जुलाई 2020 को सुबहर 1 बजकर 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 30 जुलाई 2020 को रात 11 बजकर 49 मिनट तक
पारण का समय: 31 जुलाईको 2020 सुबह 5 बजकर 42 मिनट से सुबह 08 बजकर 24 मिनट तक
क्या है श्रावण पुत्रदा एकादशी का पौराणिक महत्व?
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करना अत्यंत फलदाई है. कहते हैं कि इस व्रत के प्रताप से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इतना ही नहीं पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को सर्वोत्तम माना गया है. मान्यता है कि अगर नि:संतान दंपति पूरी श्रद्धा से व्रत करें तो उन्हें योग्य पुत्र धन की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इस व्रत को करने से वाजपेयी यज्ञ के बराबर फल मिलता है. इतना ही नहीं इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है और वह भव सागर को पर कर स्वर्ग लोक में निवास करता है.
कैसे करें श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत?


- अगर आप एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं तो दशमी यानी एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें.
- एकादशी के दिन स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब एक लोटे में पानी लेकर उसमें गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं और उसे अपने ऊपर छिड़कें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें और मन ही मन व्रत का संकल्प लें.
- संकल्प लेने के बाद श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें.
- अब उन्हें वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं. अगर आपके पास भगवान के वस्त्र नहीं हैं तो आप प्रतीक स्वरूप मौली भी अर्पित कर सकते हैं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब धूप-दीप से विष्णु जी की आरती उतारें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- इसके बाद आप स्वयं भी व्रत का पारण करें.
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
श्री पद्मपुराण में श्रावण पुत्रदा एकादशी की कथा का उल्लेख मिलता है. इस पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांतिप्रिय और धर्म प्रिय था, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी. राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी, धनहीन वैश्य थे. इसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे. राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था. अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे अगले जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं. महामुनि ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.
इस प्रकार मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया. तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा.